04 December 2008

अब डरने लगा हूँ

पहले डरता नही था पर अब डरने लगा हूँ ,
रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,
रोज़ बस से आफिस जाता हूँ ,
इसलिए आस पास की चीज़ों पर ध्यान लगता हूँ
सीट के नीचे किसी बम की शंका से मन ग्रसित रहता है
कभी कोई लावारिस बैग भ्रमित करता है ।
ख़ुद से ज़्यादा परिवार की फ़िक्र करता हूँ
इसलिए हर बात मे उनका ज़िक्र करता हूँ
रोज़ अपने चैनल के लिए ख़बर करता हूँ
और किसी रोज़ ख़बर बनने से डरता हूँ
मैं एक आम हिन्दुस्तानी की तरहां रहता हूँ
इसलिए रोज़ तिल तिल कर मरता हूँ
हालात यही रहे तो किसी रोज़ मैं भी
किसी सर फिरे की गोली या बम का शिकार बन जाऊँगा
कुछ और न सही पर बूढे अम्मी अब्बू के
आंसुओं का सामान बन जाऊँगा।
इस तरह एक नही कई जिनदगियाँ तबाह हो जाएँगी
बहोत न सही पर थोडी ही
दहशतगर्दों की आरजुओं की गवाह हो जाएँगी ।
इसीलिए मैं अब डरने लगा हूँ
हर रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,तिल तिल कर मरने लगा हूँ ।

4 comments:

akshaya gawarikar said...

Wonderful!Way to Go!

Shamikh Faraz said...

wah janab kya likha hai aapne.
kabhi waqt mile to mera blog bhi dekhen.
www.sakaamzindadili.blogspot.com

Urmi said...

मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

ADITYA DEV said...

waki aapka dar vajib hai.... ab mai v darne laga hu